भारत में मोद्रिक निति Monetary Policy in India
मुद्रा के संबंध में बनाई गई वह नीति जिसके माध्यम से या तो मुद्रा की मात्रा को बढ़ाया जाता है या घटाया जाता है मौद्रिक नीति कहलाती है। मौद्रिक नीति की समीक्षा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जाती है तथा मौद्रिक नीति से जुड़े हुए सभी आंकड़े भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं।
मौद्रिक नीति के क्या क्या उद्देश्य होते हैं?
मौद्रिक नीति के उद्देश्य :
1. अर्थव्यवस्था में कीमत स्थिरता बनाए रखना
मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में कीमत स्थिरता बनाए रखना होता है जिसके माध्यम से बाजारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
2. ब्याज दरों को नियंत्रित करना
मौद्रिक नीति के द्वारा ब्याज दरों को नियंत्रित किया जाता है जिसके द्वारा लोगों तक रुपए की पहुंच को नियंत्रित किया जाता है अगर ब्याज दर कम कर दी जाती हैं तो लोगों के पास पैसा अधिक पहुंचता है रण सस्ते हो जाते हैं। अगर ब्याज दर अधिक कर दी जाती हैं तो रण महंगे हो जाते हैं जिससे लोगों के पास पैसा कम पहुंचता है।
3. मंदी तथा अब स्थिति को दूर करना
मौद्रिक नीति के द्वारा मंदी तथा अब स्थिति को नियंत्रित करना तथा उसको दूर करने के लिए मौद्रिक नीति तैयार की जाती है।
4. मुद्रा स्थिति को नियंत्रित करना
मौद्रिक नीति के द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जाता है।
मौद्रिक नीति समिति Monetary policy committee
केंद्रीय सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45ZB के तहत एक समिति का गठन किया जाता है जिसे मौद्रिक नीति समिति कहते हैं, यह समिति मौद्रिक नीति निर्माण तथा उसकी समीक्षा करती है।
मौद्रिक नीति समिति का गठन सितंबर 2016 में किया गया था जिसमें केवल 6 सदस्य होते हैं।
मौद्रिक नीति समिति की संरचना
मौद्रिक नीति समिति में 6 सदस्य होते हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है -
पदेन अध्यक्ष : मौद्रिक नीति समिति मैं भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर इस का पदेन अध्यक्ष होता है।
पदेन सदस्य : मौद्रिक नीति समिति में भारतीय रिजर्व बैंक के उप गवर्नर इसका पदेन सदस्य होता है।
पदेन सदस्य : मौद्रिक नीति समिति में एक सदस्य केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित भारतीय रिजर्व बैंक का एक अधिकारी होता है।
श्री चेतन घाटे : भारतीय सांख्यिकी संस्थान के प्रोफेसर ।
प्रोफेसर पामी दुआ : दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निर्देशक ।
डॉ राजेंद्र ढोलकिया : भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के प्रोफेसर ।
उपर्युक्त दिए गए 4 से 6 तक के सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है। तथा इसमें जब तक केंद्रीय बोर्ड द्वारा बदलाव न किया जाए तब तक यही मान्य होगा।
अप्रैल 2014 से पूर्व में मौद्रिक नीति 8 बार जारी की जाती थी लेकिन 1 अप्रैल 2020 से उर्जित पटेल समिति की सिफारिश पर मौद्रिक नीति वर्ष में 6 बार घोषित की जाएगी।
मौद्रिक नीति के उपकरण
मौद्रिक नीति निम्नलिखित दो उपकरणों पर आधारित होती है -
मात्रात्मक उपकरण
गुणात्मक उपकरण
1. मात्रात्मक उपकरण
1. रेपो रेट Repo Rate
वह दर जिस पर आरबीआई अपने संबंधित बैंकों को अल्पकाल के लिए राशि उधार देता है, रेपो दर कहलाती है।
रेपो दर में वृद्धि करने पर बैंकों की तरलता में कमी आती है जिससे ऋण महंगे हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
रेपो दर में कमी करने पर बैंकों की तरलता में वृद्धि हो जाती है तथा जिस से ऋण सकते हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Note :
- मौद्रिक नीति समिति की बैठक का प्रावधान धारा 45ZL मैं है।
- रेपो दर तथा तरलता में विपरीत संबंध पाया जाता है।
2. रिवर्स रेपो दर Reverse Repo Rate
वह दर जिस पर बैंक भारतीय रिजर्व बैंक को पैसा उधार देते हैं, रिवर्स रेपो रेट कहलाती है। या हम कह सकते हैं की बैंकों के अतिरिक्त जमाओ को भारतीय रिजर्व बैंक के पास जिस दर पर जमा किया जाता है वह दर रिवर्स रेपो दर कहलाती है।
रिवर्स रेपो दर में वृद्धि होने पर बैंकों की तरलता में कमी आती है जिससे ऋण महंगे हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है।
रिवर्स रेपो दर में कमी होने पर बैंकों की सरलता में वृद्धि आती है, जिससे रखते हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Note: - भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश के अनुसार दीपक रेपो दर रेपो दर की तुलना में सदैव कम होती है।
3. बैंक दर Bank Rate
बैंक दर वह दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, बैंकों को दीर्घकाल के लिए राशि उधार देता है।
बैंक दर में कमी होने पर बैंकों की तरलता में वृद्धि आती है, जिससे ऋण सस्ते हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में प्रसार की स्थिति उत्पन्न होती है।
बैंक दर में वृद्धि होने पर बैंकों की तरलता में कमी आती है, जिससे ऋण महंगे हो जाते हैं और अर्थव्यवस्था में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है।
4. नकद आरक्षित दर Cash Reserve Ratio (CRR)
अनुपात का कुछ भाग प्रत्येक बैंकअपनी शुद्ध जमा राशि का भारतीय रिजर्व बैंक के पास नकद के रूप में जमा रखता है, उसे नकद आरक्षित अनुपात दर कहते हैं।
नकद आरक्षित अनुपात दर में वृद्धि करने पर बैंकों की तरलता में कमी आ जाती है तथा जिस से ऋण महंगे हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
नकद आरक्षित अनुपात दर में कमी करने पर बैंकों की तरलता में वृद्धि आ जाती है जिससे ऋण सस्ते हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Note: भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार नकद आरक्षित दर न्यूनतम 0% तथा अधिकतम 15% हो सकती है।
5. वैधानिक तरलता अनुपात दर Statutory Liquidity Ratio
बैंक अपने शुद्ध जमा राशि Net Deposit Total Liability (NDTL) का कुछ अनुपात वन के पास नकद या अन्य प्रतिभूतियों के रूप में रखता है वैधानिक तरलता अनुपात कहा जाता है।
विधानी तरलता अनुपात दल के बढ़ने पर बैंकों की तरलता में कमी आती है तथा अर्थव्यवस्था में मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
वैधानिक तरलता अनुपात दर में कमी करने पर बैंकों की तरलता में वृद्धि आती है तथा ऋण सकते हो जाते हैं एवं अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Note:
भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश अनुसार वैधानिक तरलता अनुपात दर न्यूनतम 0% तथा अधिकतम 40% हो सकती है।
बैंक सरकार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए इस कोर्स के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करता है।
अल्पावधि ऋण देने के लिए बैंक ट्रेजरी बिल खरीदता है।
6. खुले बाजार की क्रियाएं Open Market Operation
ऐसी स्थिति जिसके माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय करता है खुले बाजार की क्रियाएं कहलाती है।
खुले बाजार की दो नीतियां होती हैं :
प्रतिभूतियां क्या करना
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता में वृद्धि हो जाती है तथा अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
प्रतिभूतियों का विक्रय करना :
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता में कमी हो जाती है तथा अर्थव्यवस्था में मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
गिल्ट-एज-बाजार क्या होता है ?
वह बाजार जहां भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है गिल्ट-एज-बाजार कहलाता है।
7. सीमांत स्थाई सुविधा Marginal Standing Facility :
एक ऐसी सुविधा जो बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक से अति अल्प काल के लिए ऋण की सुविधा प्रदान करती है कि ईमान तिहाई सीधा मार्जिन स्टैंडर्ड फैसिलिटी कहलाती है।
सीमांत स्थाई सुविधा बैंक द्वारा अतिक्रमण ताकि स्थिति या दोपहर बाद नकदी की जरूरत पड़ने पर प्रयोग की जाती है।
बैंक सीमांत स्थाई सुविधा के जरिए एक रात के लिए भी ऋण ले सकता है।
रण की न्यूनतम राशि एक करोड़ होगी।
सीमांत स्थाई सुविधा सभी कार्य दिवसों पर शाम 3: 30 pm to 4 : 30 pm तक उपलब्ध होगी।
इस सुविधा की शुरुआत 9 मई 2011 में की गई थी।
Note : यह बैंकिंग प्रणाली को चल निधि घटको के खिलाफ सुरक्षा वोल्व प्रदान करती है।
2. गुणात्मक उपकरण
1. सीमांत आवश्यकता Margin Requirement :
बैंक ऋण लेने वालों को कुछ संपत्तियों के बदले ऋण प्रदान करता है, बंधक रखी गई संपत्तियां तथा ऋण के बीच के अंतर को सीमांत आवश्यकता कहा जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक RBI जिस क्षेत्र में ऋण का प्रवाह बढ़ाना चाहता है, वहां सीमांत आवश्यकता Margin requirement (MR) बढ़ा देता है।
साख की राशनिंग Rationing of Credit :
इसके माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को ऋण देने का कोटा निर्धारित किया जाता है।
सभी वाणिज्यिक बैंक कुल ऋण का 40% प्राथमिक प्राप्त क्षेत्र को देंगे और इस 40% का 18% कृषि को दिया जाएगा। इसका पालन न करने पर भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों का लाइसेंस रद्द कर सकता है या ऋण देना बंद कर सकता है।
अन्य महत्वपूर्ण दरें
1. प्रधान उधार दर Prime Lending Ratio (PLR)
प्रधान उधार दर वह दर होती है जिस पर बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहक को ऋण देता है। यह एक न्यूनतम दर होती है।
2. आधार दर Base Rate :
जुलाई 2010 से लागू वह दर जिसके नीचे कोई भी बैंक ऋण नहीं दे सकता है आधार दर कहलाती है।
नरसिम्हा समिति Narasimha Committee :
नरसिम्हा समिति की स्थापना 1991 में पहली बार की गई थी तथा दूसरी बार 1998 में इसकी स्थापना की गई थी।
इसके द्वारा प्रमुख संस्तुतियों दी गई थी -
नकद आरक्षित अनुपात में कमी करना।
वैधानिक तरलता अनुपात में कमी करना।
बैंकों के दोहरा नियंत्रण की समाप्ति करना (RBI & वित्त मंत्रालय)
शाखा लाइसेंसिंग की समाप्ति।
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